रुके तो चांद जैसी है ...
चले तो हवाओं जैसी है ...!!
वो माँ ही है ..
जो धूप में भी छाँव जैसी है....!!
हजार के नोटों से तो बस अब जरूरत पूरी होती है... मजा तो " माँ " से मांगे एक रूपये के सिक्के में था।
मे तो अभी भी छोटी ही हूँ..
मेरी मां मुझे बड़ा होने ही नहीं देती...!!
संसार में ऍसी कौनसी जगह हैं, जहां सारे पाप ,सारी गलतिया. पल भर मे माफ हो जाती हैं ? मेरे मुँह से निकल गया मेरी मा का हृदय..मेरी माँ....
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