मुझे लेते हो जब अपनी मुहब्बत की पनाहों में,
ये जादू कैसा तुम करते खिची आती मै बांहों में,
ये धड़कन तेज क्यों होती ये सांसे क्यों उखडती है
मुझे जब देखते हो तुम निगाहों ही निगाहों में..
चलो आज खामोश प्यार को इक नाम दे दें,
अपनी मुहब्बत को इक प्यारा अंज़ाम दे दें
इससे पहले कहीं रूठ न जाएँ मौसम अपने
धड़कते हुए अरमानों एक सुरमई शाम दे दें !
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